बालोद : भेंड़ और ऊंट छत्तीसगढ़ के धरती पर दिखना आम बात है गुजरात के कच्छ के रण में चारा और पानी की कमी के चलते पशु पालक अक्सर अपने पशुओं को चारागाह उपलब्ध कराने हेतु छत्तीसगढ़ के धरा पर जगह जगह जंहा चारागाह पशुओं को मिल सके वंहा पर भेंड़ीवाले के नाम मशहूर चारवाहों की टोली बड़े बड़े ऊंटों पर अपनी दिनचर्या का सामान लादे हुए आसानी से देखा जा सकता है।
कोरोना महामारी और के चलते भारत सरकार ने 22 मार्च को लाकडाऊन की घोषणा की थी तब भी भेंड़ीवाले जिला के विभिन्न क्षेत्रों में अपने ऊंट और भेंड़ को चारा चराते हुए दिखे थे उस वक्त इन्हे जरूरी सामान व राशन जिला प्रशासन बालोद ने मुहैया कराते हुए मानवता की मिशाल पेश की थी जिस तरह से बालोद एस डी एम सिल्ली थामस ने इन चारवाहों तक पहुंचने के लिए बिजली के खंभे से होते हुए इन्हे जरूरत के सामान मुहैया कराई थी उसे भुलाया नहीं जा सकता है।
भेंड़ और ऊंट की विशाल सेना इन दिनों जिला के गुरूर वन मंडल परिक्षेत्र में विचरण कर जंगल में बारिस के दिनों में उगे हुए जंगली पौधों व चारा को खा रही है जो जंगल व प्रर्यावरण की मजबुत सेहत के लिए घातक साबित हो सकती है वंही वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारीयों से मिली भगत की बात खुद भेंड़ चारवाहे करते हैं यंहा तक की भेंड़ चारवाहों के एक मुखिया का संबंध तो देश के एक बड़े से नेता से जुड़े होने की बात वन विभाग के कर्मचारी व भेंड़ चारवाहे भी करते हैं खैर किसका रिस्ता किससे है हमें यह बताने की जरूरत कतैई नहीं है हमारी सवाल जीन बिन्दुओं पर है हम सिधा उसी पर आते हुए आगे आपके मध्य रखते हैं - छत्तीसगढ़ के बड़े बुजुर्ग कह गये है, कि छेरी (भेंड़ बकरी) के चरे अऊ कचहरी के चढ़े कभ्भु नी उबरे अर्थात यदी किसी पौधे को भेंड़ और बकरी ऊपर से चट कर जाये तो उस पौधे का विकास असंभव है ठिक उसी प्रकार से जिस तरह से कोई इंसान एक बार कचहरी के दरवाजे पर चढ़ने के बाद कभी भी नहीं उबर सकता है।
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